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भारत में आने वाले फ्लड के कारण

क्या आपको पता है सन 1980 से लेकर 2017 के बीच, भारत में लगभग 278 फ्लड देखे गए हैं, जिस कारण लगभग 750 मिलियन लोग प्रभावित हुए हैं?

मुख्यतः मॉनसून के कारण ही भारत का क्लाइमेट अत्यधिक प्रभावित होता है, जिस कारण हमें देश के विभिन्न राज्यों में फ्लड का प्रकोप देखने को मिलता है। फ्लड ड्रेनेज बेसिन का एक अत्यधिक आवश्यक हाइड्रोलॉजिकल कंपोनेंट है जो अनेक कारणों की वजह से अस्तित्व में आ सकता है।

फ्लड के प्रमुख कारणों और इससे सम्बंधित सारी महत्वपूर्ण चीजों के विषय में आपके पास अच्छी जानकारी होनी चाहिए और इन विषयों के बारे में अधिक जानने के लिए हमारे इस लेख को पूरा पढ़ें। 

फ्लड क्या है?

फ्लड एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है जिसमें आमतौर पर सूखी भूमि पानी के सैलाब के नीचे डूब जाती है। भारी बारिश के कारण, पानी का सैलाब बन जाता है और इस पानी के सैलाब के कारण लोगों और उनकी संपत्ति को भी भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। भारी बारिश के अलावा भी ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से फ्लड की उत्पत्ति हो सकती है। तो चलिए अब हम भारत में आने वाले फ्लड के कारणों को समझने की कोशिश करते हैं। 

भारत में फ्लड आने के मुख्य कारण

फ्लड के सामान्य कारणों को उसे ट्रिगर करने वाले फैक्टर्स के आधार पर विभाजित किया जा सकता है। उन फैक्टर्स में से कुछ फैक्टर निम्नलिखित हैं - 

  • मेटियोरोलॉजिकल फैक्टर्स

  • फिजिकल फैक्टर्स

  • ह्यूमन फैक्टर्स

चलिए अब हम उन फैक्टर्स की चर्चा करते हैं जो भारत में फ्लड के आने का का मुख्य कारण बन सकते हैं।

1. मेटियोरोलॉजिकल फैक्टर्स

फ्लड के प्राकृतिक कारणों के सम्बन्ध में नीचे विस्तार से चर्चा की गयी है -

  • भारी वर्षा: मॉनसून का मौसम भारत में जुलाई महीने के मध्य से लेकर सितंबर महीने के अंत तक रहता है। मॉनसून के मौसम में बारिश का पानी बहकर बांधों में जमा हो जाता है। जब यह रुका हुआ एकत्रित पानी स्टोरेज कैपेसिटी की सीमा से अधिक बढ़ जाता है, तो यह पानी फ्लड का रूप लेकर आस पास के क्षेत्रों को काफी भारी नुकसान पहुँचाता है। आमतौर पर वर्षा के कारण वेस्ट बंगाल के सब-हिमालयन मैदान, इंडो-गंगा, वेस्टर्न घाट के वेस्टर्न कोस्ट वाले क्षेत्र और असम में फ्लड देखने को मिलते हैं। 

  • क्लाउड बर्स्ट: क्लाउड बर्स्ट कम अवधि में भारी वर्षा के कारण होता है जो कभी-कभी ओलावृष्टि और तूफान के साथ हो सकता है और कई स्थितियों में यह फ्लड का मुख्य कारण भी बन जाता है। क्लाउड बर्स्ट जैसी प्राकृतिक आपदा पहाड़ की ढलानों पर घटित होती है जिस कारण बरसता हुआ पानी नीचे के मैदानों की तरफ बहने लगता है, और अंततः उन क्षेत्रों में फ्लड जैसी स्थिति निर्मित होती हैं। 

  • साइक्लोन: साइक्लोन कम प्रेशर वाले ज़ोन में देखने को मिलते है जहाँ हवाएं अंदर की ओर घूमती हैं। साइक्लोन बड़े पैमाने पर तूफान के साथ ही देखने को मिलते हैं, और इनकी वजह से मौसम की स्थितियों मे भी काफी भारी परिवर्तन देखने को मिलता है। भारत में चार ईस्टर्न कोस्टल स्टेट, जैसे तमिलनाडु, वेस्ट बंगाल, ओडिशा, और आंध्र प्रदेश, ज्यादातर साइक्लोनिक फ्लड से पीड़ित रहने वाले क्षेत्रों में आते हैं। 

  • ग्लोबल वार्मिंग: ग्लोबल टेंपरेचर के बढ़ने के कारण हिमालय रेंज के ग्लेशियर धीरे धीरे पिघलने लगते हैं। जिसके परिणामस्वरूप, समुद्री जल का स्तर भी बढ़ने लगता है, जिससे कुछ वर्षों के बाद, आसपास के क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति देखने को मिलती है। 

  • भूकंप और लैंडस्लाइड: टेक्टोनिक प्लेट्स में बदलाव होने के कारण सतह में पानी की मात्रा और कोर्स में परिवर्तन देखने को मिलता है, जिस कारण वह क्षेत्र फ्लड से ग्रसित हो सकता है। लैंडस्लाइड के दौरान, पानी की सतह में मलबे के बहने से नदी में सेडीमेंट की मात्रा बढ़ जाती है, जो फ्लड जैसी विनाशकारी प्राकर्तिक आपदा को जन्म देने का काम करती है। 

2. फिजिकल फैक्टर्स

जो लोग फ्लड के कारणों के रूप में काम करने वाले फिजिकल फैक्टर्स के बारे में सोच रहे हैं, वे निम्नलिखित अनुभाग से इसकी एक स्पष्ट जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। 

  • अपर्याप्त ड्रेनेज मैनेजमेंट: किसी भी क्षेत्र में ड्रेनेज मैनेजमेंट के लिए ढंग की व्यवस्था न होने के कारण भारी वर्षा होने पर रोड में पानी भर जाता है जिससे उस पुरे शहर में फ्लड की स्थिति निर्मित हो जाती है। 

  • कैचमेंट एरिया: कैचमेंट एरिया उस स्थान को कहा जाता है जहाँ से वर्षा का पानी बहता हुआ सीधा नदी में जाकर मिलता है। कई बार यह कैचमेंट एरिया एक झील या जलाशय भी हो सकता है। मानसून के दौरान, जब वर्षा का पानी तालाब की होल्डिंग कैपेसिटी की सीमा से अधिक हो जाता है, तो कई बार इस कारण उस क्षेत्र में हमें फ्लड का प्रभाव देखने को मिलता है।

3. ह्यूमन फैक्टर्स

जिन ह्यूमन फैक्टर्स के कारण फ्लड की स्थिति निर्मित होती है उसकी एक लिस्ट निम्नलिखित है -

  • सिल्टेशन: सिल्टेशन का तात्पर्य नदी के तल में सिल्ट और सेडीमेंट के बहाव से है। चूंकि कण नदी में निलंबित रहते हैं और नदी के तल में जमा हो जाते हैं, यह नदी के प्रवाह को बाधित करने का कार्य करते हैं, जिससे उस क्षेत्र में बाढ़ आ जाती है। 

  • अनुचित कृषि पद्धतियां: यदि किसान कृषि पद्धतियों के प्रभावों के प्रति सतर्क नहीं हैं, अर्थात यदि वे अपशिष्ट पदार्थ को नदी में छोड़ देते हैं या वाटर मैनेजमेंट को ठीक से नहीं संभाल पाते हैं, तो इस कारण भी उस क्षेत्र में फ्लड आ सकती है।

  • डिफॉरेस्टेशन: डिफॉरेस्टेशन फ्लड के प्रमुख ह्यूमन फैक्टर्स में से एक है। पेड़ एक स्पंज की तरह काम करते हैं जो मिट्टी और पानी को अपनी जड़ों से जकड़ कर रखता है, जो फ्लड को भी रोकने का काम करते हैं। अर्बनाइजेशन के विकास के लिए जिस तरह पेड़ों को तेज गति से काटा जा रहा है, उसकी वजह से वर्षा का पानी बहता हुआ सीधा नदी में चला जाता है जिस कारण नदी का जलस्तर बढ़ जाता है, और अंत में नतीजा यह होता है की आस पास के क्षेत्रों में फ्लड आ जाती है, जिस कारण लोगों को काफी भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। 

  • बांधों का ढहना: बांधों का निर्माण पानी को कलेक्ट करने और आस पास के लोगों को पिने का पानी उपलब्ध कराने के लिए किया जाता है। चूंकि बांध मानव निर्मित होते हैं, तो कई बार इसमें कुछ खराबी भी आ सकती है जो बाद में फ्लड रूप भी ले सकती है। इसके अलावा, यदि भारी वर्षा लंबे समय तक बनी रहती है, तो ऐसे में कई बार राज्य सरकार द्वारा बांध के गेट को खोलने का आदेश दिया जाता है, जिससे आस पास के क्षेत्रों को काफी विनाशकारी फ्लड का सामना काढ़ना पड़ता है। 

ऊपर बताई गयी सभी बातों से आपने यह तो समझ ही लिया होगा की किसी क्षेत्र में किन कारणों की वजह से फ्लड आ सकती है। तो चलिए अब फ्लड के विभिन्न प्रकारों को समझने की कोशिश करते हैं। 

फ्लड कितने प्रकार के होते है?

मुख्यतः फ्लड के 6 प्रकार होते हैं, जो नीचे निम्नलिखित हैं –

  • कोस्टल फ्लड: जब उची लहरों के साथ तेज हवाएं या तूफान तट की ओर तेज़ी से बढ़ती है, तो इससे जिस फ्लड का निर्माण होता है उसे कोस्टल फ्लड के नाम से जाना जाता है।

  • फ़्लैश फ्लड: फ़्लैश फ्लड आमतौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में आस पास के जगहों में देखने को मिलता है। यहाँ अचानक से होने वाली भारी वर्षा या बर्फ के अधिक मात्रा में पिघलने के कारण फ्लड की उत्पत्ति होती है। फ्लैश फ्लड की तेज गति वाली धारा कार, चट्टान के साथ ही अपने रास्ते में आने वाली हर बड़ी से बड़ी चीज़ को अपने साथ बहा कर ले जाती है।

  • रिवर फ्लड: रिवर फ्लड भारी मात्रा में वर्षा, बर्फ के पिघलने या शक्तिशाली तूफानों से आने वाले पानी के जोरदार बहाव के कारण उत्पन्न होते हैं।

  • फ्लूवियल फ्लड : फ्लूवियल फ्लड उन क्षेत्रों में ज्यादातर देखने को मिलते हैं, जहाँ वर्षा के पानी को रोकना मुमकिन नहीं होता और आखिर में यह पानी पोखर और तालाब के रूप में किसी एक स्थान पर एकत्रित हो जाता हैं। इस प्रकार के फ्लड ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिलते हैं। 

  • अर्बन फ्लड: अर्बन क्षेत्र में जब ड्रेनेज सिस्टम वर्षा की पानी को सोख नही पाता या किसी प्रकार पानी को सोखने में असमर्थ हो जाता है, तो यह बारिश का पानी अर्बन फ्लड का कारण बन जाता है। 

  • ग्राउंड वॉटर फ्लड: लगातार वर्षा मिट्टी में मौजूद जल के स्तर को बढ़ा सकती है जिससे यह सैचुरेटेड हो सकती है। जमीन की सतह से ऊपर जल स्तर में होने वाले वृद्धि फ्लड का कारण भी बन सकते हैं।

अब तक आप यह समझ चुके होंगे कि फ्लड के मुख्य कारण क्या होते हैं और फ्लड कितने प्रकार के हो सकते हैं। तो चलिए अब हम भारत में फ्लड के कारण होने वाले प्रभावों को समझने की कोशिश करते हैं।

भारत में फ्लड से होने वाले नुकसान क्या हैं?

फ्लड के होने वाले प्रभाव स्थान, अवधि और क्षेत्र की भेद्यता पर निर्भर करते हैं। फ्लड किसी एक व्यक्ति, पुरे समुदाय या कई बार दोनों को काफी बुरी तरह से प्रभावित करती है जिससे काफी नकारात्मक सोशल-एनवायर्नमेंटल परिणाम उत्पन्न होते हैं। फ्लड के कारण होने वाले नुकसान की एक सूची नीचे दी गई है।

  • ह्यूमन लॉस और प्रॉपर्टी लॉस: फ्लड के कारण भारत में हर साल लाखों लोग बेघर हो जाते हैं और कई लोग फ्लड के पानी के साथ बहकर अपनी जान भी गवा देते हैं। 

  • कम्युनिकेबल डिजीजेज का फैलना: वेक्टर-बॉर्न डिजीज जैसे हैजा, टाइफाइड, बुखार, हेपेटाइटिस और लेप्टोस्पायरोसिस आदि जैसी बीमारियां फ्लड प्रभावित क्षेत्रों में फैलने लगती है। फ्लड से वेक्टर-बॉर्न डिजीज भी फैलने लगते हैं, जो मच्छर जैसे पैरासाइट और पैथोजन के माध्यम से उस पुरे क्षेत्र में फैलने लगती है। नतीजन फ्लड के कारण लगभग सभी फ्लड पीड़ित व्यक्ति बीमार पड़ जाते हैं। 

  • फसलों का विनाश: प्रत्येक वर्ष फ्लड की वजह से बहुत बड़ी संख्या में फसलों को नुकसान पहुँचता है, जिससे फ्लड वाले क्षेत्र में रहने वाले किसानों तथा आम जनता को भी काफी भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है।

  • पशु की हानि: मनुष्यों की तरह, फ्लड के दौरान पशु भी जल के प्रवाह के कारण बह जाते हैं और अपने आवासों के नष्ट हो जाने के कारण मर जाते हैं।

  • कम्युनिकेशन लिंक और ट्रांसपोर्टेशन में व्यवधान: फ्लड के कारण कम्युनिकेशन लिंक जैसे पुल, रेल, पावर प्लांट आदि को भारी नुकसान पहुँचता है, जिससे फ्लड वाले क्षेत्रों में कम्युनिकेशन ठप पड़ जाता है। 

  • आर्थिक और सामाजिक व्यवधान: फ्लड के कारण अर्थव्यवस्था भी काफी बिगड़ जाती है जिस कारण उस क्षेत्र के लोगों के जीवन मे कठिनाईयाँ आ जाती है जिस वजह से लोग अपने घर को छोड़कर किसी दूसरी जगह पर जाने के लिए मजबूर हो जाते हैं और उन्हें इस स्थिति से उभरने में काफी समय लगता है। 

लोगों को फ्लड के प्रभाव की जानकारी के अलावा फ्लड- प्रोन क्षेत्रों के बारे में भी अच्छी जानकारी होनी चाहिए, ताकि वे अपने तथा अपने परिवार के लोगों के लिए सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकें।

 उनके बारे में अधिक जानने के लिए हमारे साथ बने रहें। 

भारत में फ्लड जोखिम क्षेत्रों की सूची

नीचे दी गई लिस्ट मे भारत के प्रमुख फ्लड-प्रोन क्षेत्र के नाम बताए गए हैं -

  • पंजाब

  • हरियाणा

  • नॉर्थ बिहार

  • वेस्ट बंगाल

  • उत्तर प्रदेश

  • कोस्टल आंध्र प्रदेश

  • ओडिशा

  • साउथ गुजरात

  • ब्रह्मपुत्र वैली 

  • गंगा रिवर बेसिन

  • रिवर नर्मदा और तपती का नॉर्थ - वेस्ट क्षेत्र 

  • महानदी, कृष्णा और कावेरी के पास का दक्कन क्षेत्र। 

अगर आप फ्लड प्रभावित क्षेत्रों मे रहते हैं या उन क्षेत्रों में रहना आपकी मजबूरी है, तो ऐसे में आप कुछ उपायों की सहायता से फ्लड के प्रभाव को कम कर उसके दुष्प्रभावों से खुद को सुरक्षित रख सकेंगे। 

निचे दी गयी जानकारी को ध्यान से पढ़े! 

भारत में फ्लड को नियंत्रित करने के लिए कुछ प्रिवेंटिव मेज़र्स:

  • मैंग्रोव का रोपण: कोस्टल फ्लड को रोकने के लिए, राज्य सरकार को कोस्टल क्षेत्रों में अधिक से अधिक मैंग्रोव लगाने में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए। मैंग्रोव के पेड़ फ्लड से बचाव के लिए एक मजबूत बैरियर के रूप में काम करते हैं। इसलिए, सरकार को कोस्टल क्षेत्रों में मैंग्रोव संरक्षण पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान देना चाहिए, ताकि वे अपने राज्य के लोगों और उनकी संपत्ति के लिए सुरक्षा सुनिश्चित कर सकें। 

  • ऑप्टिमाइज़िंग टेक्नोलॉजी: टेक्नोलॉजी में उन्नति के कारण अब हमें फ्लड की भविष्यवाणी करने में काफि सहायता मिलती है, जिससे हम फ्लड संभावित क्षेत्र में रहने वाले लोगों को फ्लड के लिए सचेत कर सकते हैं। फ्लड जैसे मामलों में IFFLOWS जैसी इंटेलिजेंट फ्लड वार्निंग सिस्टम का इस्तेमाल करना बेहद फायदेमंद साबित हो सकते हैं। 

  • संरचनात्मक और गैर-संरचनात्मक उपाय करना: संरचनात्मक उपाय फ्लड से बचाव के लिए फिजिकल परिवर्तनों या कार्यों (जैसे इमारतों को फिर से डिजाइन करना या आपदाओं के लिए फिजिकल बैरियर का निर्माण करना) को लोगों की जान बचने के लिए उपयोग किया जाता है। दूसरी ओर, गैर-संरचनात्मक उपायों का तात्पर्य सामाजिक समाधान जैसे निकासी की योजना बनाना, फ्लड में आपातकालीन स्थितियों की तैयारी करना है। फ्लड के दौरान ये दो प्रकार के उपाय भारत में फ्लड के प्रभावों को कम करने में काफी मददगार साबित हो सकते हैं।

फ्लड संभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए ख़रीदे जाने वाले इंश्योरेंस प्रोडक्ट्स

अपने घर को फ्लड से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए, आप अपने घर के लिए एक फ्लड इंश्योरेंस खरीद सकते हैं।

फ्लड इंश्योरेंस: फ्लड इंश्योरेंस एक प्रकार का प्रॉपर्टी इंश्योरेंस है जो फ्लड के कारण होने वाले सारे नुकसान को कवर करने का काम करता है (जिसमें भारी वर्षा, बर्फ के पिघलने, कोस्टल स्टॉर्म, बड़ी टाइडल वेव्स के कारण शहर में प्रवेश करने वाले समुद्री जल के कारण आदि से होती है)। फ्लड इंश्योरेंस होम इंश्योरेंस का ही एक हिस्सा है जहां आपको अपने घरों की मरम्मत के लिए एक राशि कंपनसेशन के तौर पर मिलती है।

अब जैसा की आप लोगों ने फ्लड के कारणों, फ्लड के प्रकार, फ्लड-प्रोन क्षेत्रों के बारे में जान ही लिया है, तो प्राप्त हुई जानकारी के आधार पर आप अपने क्षेत्र की पहचान कर खुद को सुरक्षित रखने के लिए सावधानी बरत सकते हैं (जैसे फ्लड इंश्योरेंस खरीदना)।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

अर्बन फ्लडिंग के प्रमुख कारण क्या हैं?

वॉटर बॉडीज का सूखना, इम्प्रोपर गार्बेज डिस्पोजल का न होना, और खराब लैंड पॉलिसी अर्बन फ्लड के प्रमुख कारण हैं।

क्या ग्रीन हाउस गैसों के निकलने की वजह से फ्लड आ सकता है?

जी हाँ, ग्रीनहाउस गैसेस का निकलना भी फ्लड का एक प्रमुख कारण बन सकता है, क्यूंकि ये ग्रीनहाउस गैस पृथ्वी के टेम्परेचर को बढ़ाने का काम करते हैं, जिस कारण ग्लेशियर के बर्फ धीरे धीरे पिघलने लगते हैं और फ्लड की स्थिति निर्मित हो जाती है।

फ्लड को नियंत्रित करने के लिए किन फिजिकल बैरियर्स का उपयोग किया जाता है?

जलाशय, रेज़र्वोयरस और वाटर ड्रेनेज चैनल जैसे फ़िज़िकल बैरियर फ्लड को नियंत्रित करने के लिए उपयोग में लिए जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण संरचनात्मक उपाय हैं।