महिलाओं के लिए आयकर स्लैब के बारे में सब कुछ
आपको पता है, भारत में पहले महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग इनकम टैक्स स्लैब थे, पर हाल के दिनों में इसमें व्यापक बदलाव हुए हैं। अब देश में इनकम टैक्सको ‘प्रगतिशील’ के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। इसका मतलब यह हुआ कि देय इनकम टैक्समें वृद्धि की दर किसी व्यक्ति की इनकममें वृद्धि के सीधे आनुपातिक है, चाहे उनका लिंग कुछ भी हो।हालांकि, यह सुनकर आपको थोड़ा अजीब लग रहा होगा। पर, इसका सीधा सा मतलब यह है कि किसी व्यक्ति की टैक्स देनदारी उनकी इनकममें वृद्धि के साथ बढ़ती है और यह उस व्यक्ति की इनकमके अलावा उनकी उम्र पर भी निर्भर करता है।
टैक्सेशन के प्रयोजनों के लिए टैक्सपेयर्स को तीन व्यापक समूहों में वर्गीकृत किया गया है -
- 60 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति।
- 60 से 80 वर्ष की आयु के व्यक्ति (सीनियर सिटीजन)।
- 80 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति (अति सीनियर सिटीजन)।
हालांकि पहले भारत में पुरुष और महिला टैक्सपेयर्स के लिए मूल टैक्स छूट लिमिट अलग-अलग थी। जब उनकी अर्जित इनकमपर टैक्स भुगतान की बात आती थी, तो महिलाओं को उच्च बुनियादी छूट लिमिट का लाभ मिलता था।
2012-13 से बुनियादी छूट लिमिट में यह अंतर दूर हो गया है और अब पुरुषों व महिलाओं दोनों के लिए उनकी इनकमऔर उम्र के संबंध में सामान्य टैक्स स्लैब पेश किए गए हैं।
महिलाओं के लिए इनकम टैक्स स्लैब की विस्तृत व्याख्या निम्नलिखित है - 60 वर्ष से कम आयु, सीनियर सिटीजन और अति सीनियर सिटीजन।
महिलाओं के लिए इनकम टैक्स स्लैब पर एक विस्तृत नज़र
इनकम टैक्स स्लैब किसी की इनकमऔर उम्र के आधार पर लागू टैक्स दरों को संदर्भित करता है। अब, जबकि वर्गीकरण प्रक्रिया समान है, स्लैब प्रत्येक केंद्रीय बजट के दौरान परिवर्तन के अधीन हैं। ऐसे बजट के लिए जहां परिवर्तनों का विशेष रूप से उल्लेख नहीं किया गया है, टैक्स दरें पिछले वित्तीय वर्ष के समान ही रहती हैं।