स्वास्थ्य खराब हो तो स्वास्थ्य देखभाल की लागत में लगातार हो रही वृद्धि भी तनाव की एक वजह बन जाती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2018-19 के दौरान स्वास्थ्य संबंधी मुद्रास्फीति करीब 7.4% थी जो देश में 3.4% की कुल मुद्रास्फीति दर के दोगुने से भी ज्यादा है। (1)
जब आपका नियमित मेडिकल इंश्योरेंस प्लान क्रिटिकल इलनेस के खर्चों के लिए जरूरी सुरक्षा नहीं दे पाता है, तब क्रिटिकल इलनेस की पॉलिसी अतिरिक्त वित्तीय सहायता कर सकती है।
इस प्रकार, देश में सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा के बारे में आपकी चिंता गलत नहीं है।
गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी लेकर ऐसी बीमारियों की वजह से होने वाली देनदारियों के समय आपकी आंशिक वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित हो जाती है। अगर आपको खास बीमारी का पता चलता है तो इन प्लान में अस्पताल में भर्ती करने का शुल्क, अस्पताल में भर्ती होने से पहले और बाद की लागत, मेडिकल खर्चे वगैरह के साथ इलाज का खर्चा रीइंबर्स हो जाता है।
तो अगर आप हेल्थ इंश्योरेंस प्लान खरीदते हैं तो आप सुरक्षित हैं, न? गलत!
मानक हेल्थ इंश्योरेंस प्लान सिर्फ खास बीमारी और इसके इलाज की वजह से हुई वित्तीय देनदारियों के लिए ही सुरक्षा देते हैं। सबसे जरूरी बात जो समझी जानी चाहिए वो है कि आपकी आम मेडिकल इंश्योरेंस पॉलिसी में कई सामान्य लेकिन गंभीर बीमारियों के इलाज को कवर करने के लिए जरूरी इंश्योर की हुई रकम नहीं मिलती है।
उदाहरण के लिए अगर आपको कैंसर, दिल की बीमारी का पता चला है या अंग प्रत्यारोपण की आपको जरूरत है तो आपकी मेडिकल इंश्योरेंस पॉलिसी ऐसे इलाज के खर्चों के लिए पर्याप्त नहीं होगी। इन परिस्थितियों में खुद को वित्तीय तौर पर सुरक्षित रखने के लिए आपको क्रिटिकल इलनेस के लिए कवर लेना जरूरी होगा ।