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डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स के बीच का अंतर आपको पता है?, चलिए जानते हैं

ये तो सबको पता है कि भारत में हर कमाने वाले व्यक्ति को अलग-अलग स्लैब रेट के अनुसार इनकम टैक्स का भुगतान करना पड़ता है। यही नहीं, जब व्यक्ति कोई सामान भी खरीदता है या कोई सर्विस लेता है, तब भी उसे उस प्रोडक्ट या सर्विस पर टैक्स देना पड़ता है। और यहीं पर विभिन्न प्रकार के टैक्स व उनके अंतर को समझने की जरूरत होती है।

इस लेख में हर पॉइंटर को आसानी से समझने के लिए सारणीबद्ध रूप से डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स के बीच के अंतर को बताने की कोशिश की गई है। तो चलिए आसान भाषा में समझने का प्रयास करते हैं।

डायरेक्ट टैक्स बनाम इनडायरेक्ट टैक्स

डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स के बीच अंतर करने के लिए नीचे दी गई टेबल देखें।

अंतर के प्रमुख बिंदु

डायरेक्ट टैक्स  इनडायरेक्ट टैक्स 
परिभाषा इस रकम का भुगतान व्यक्ति सीधे सरकार को करता है, और अन्य इसे स्थानांतरित नहीं कर सकते हैं। ऐसे विभिन्न अधिनियम हैं, जो इस रकम की निगरानी करते हैं। उत्पादों, वस्तुओं और सेवाओं के अंतिम-उपयोग उपभोक्ता इनडायरेक्ट टैक्स का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हैं। यह वैरिएंट निर्माताओं व आपूर्ति टैक्सपेयर के लिए माल की बिक्री, आयात और खरीद के लिए लागू है। हालांकि, इस प्रकार के टैक्स का भुगतान करने की जवाबदेही उपभोक्ताओं को दी जाती है।
फायदे डायरेक्ट टैक्स का कलेक्शन प्रतिवर्ष होता है और अधिकतर स्रोत पर ही डिडक्शन किया जाता है, जो इसे अधिक लागत प्रभावी बनाता है और एडमिनिस्ट्रेटिव लागत को कम करता है। टैक्स की रकम निश्चित होती है, जिससे सरकार को राजस्व का सटीक अनुमान लगाने में मदद मिलती है। ऐसे टैक्स का कलेक्शन मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद करता है और असमानताओं को कम करता है। उपभोक्ताओं को खरीदारी के समय ही इनडायरेक्ट टैक्स का भुगतान करना पड़ता है। ऐसे में टैक्स कलेक्शन आसान और सुविधाजनक है। इनडायरेक्ट टैक्स भुगतान बराबर योगदान सुनिश्चित करते हैं, क्योंकि टैक्सपेयर बुनियादी वस्तुओं पर कम टैक्स दर और विलासिता की वस्तुओं पर उच्च दर वहन करते हैं।
टैक्स का अधिरोपण जैसा कि नाम से पता चलता है, यह रकम सीधे टैक्सपेयर की इनकम पर लगाई जाती है। सरकार इसे खरीदी गई या ली गई वस्तुओं और सर्विस के लिए टैक्सपेयर पर लगाती है।
भुगतान का क्रम व्यक्ति इसका भुगतान सीधे सरकार को कर सकता है। किसी मध्यस्थ के माध्यम से भी व्यक्ति सरकार को इसका भुगतान कर सकता है।
भुगतान करने वाली संस्था बिज़नेस और व्यक्ति ऐसे टैक्स का भुगतान करते हैं। अंतिम-उपयोग उपभोक्ता ऐसे टैक्स का भुगतान करते हैं।
भुगतान की दर सरकार इनकम और मुनाफे के आधार पर रेट तय करती है। सरकार उत्पादों और अंतिम उपयोग के आधार पर रेट तय करती है।
भुगतान का हस्तांतरणीयता नॉन-ट्रांसफरेबल ट्रांसफरेबल
टैक्स की प्रकृति यह प्रोग्रेसिव टाइप है, जिसका अर्थ है कि टैक्स रेट किसी व्यक्ति की इनकम व लाभ के साथ बढ़ती है। यह रिग्रेसिव टाइप है, जिसका अर्थ है कि किसी व्यक्ति की इनकम चाहे जो भी हो, टैक्स रेट समान ही रहता है।

ऊपर उल्लिखित टेबल डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स के बीच प्रमुख अंतर बिंदुओं को शामिल करती है। डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स के बीच अंतर को समझने के लिए इन पॉइंटर को ध्यान से पढ़ें।

[स्रोत 1]

[स्रोत 2]

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

भारत में डायरेक्ट टैक्स का प्रबंधन और नियंत्रण कौन करता है?

केंद्रीय डायरेक्ट टैक्स बोर्ड (सीबीडीटी) भारत में डायरेक्ट टैक्स का प्रबंधन करता है और राजस्व विभाग इसे नियंत्रित करता है।

[स्रोत]

इनडायरेक्ट टैक्स का प्रबंधन और नियंत्रण कौन करता है?

केंद्रीय इनडायरेक्ट टैक्स और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) भारत में इनडायरेक्ट टैक्स का प्रबंधन करता है और राजस्व विभाग इसे नियंत्रित करता है।

[स्रोत]

डायरेक्ट टैक्स कितने प्रकार के होते हैं?

डायरेक्ट टैक्स के प्रकारों में इनकम, धन, कॉर्पोरेट और कैपिटल गेन टैक्स शामिल हैं।

इनडायरेक्ट टैक्स कितने प्रकार के होते हैं?

इनडायरेक्ट टैक्स के प्रकारों में वस्तु एवं सेवा टैक्स, वैल्यू-एडेड टैक्स, बिक्री और सर्विस टैक्स शामिल हैं।