हालांकि, हेल्थ इंश्योरेंस धीरे-धीरे बदल रहे हैं और उन कवर को भी ले रहे हैं जिन पर लंबे समय से ध्यान नहीं दिया गया था। भारत में हेल्थ इंश्योरेंस देने वाली ज्यादातर कंपनियां आगे आ रही हैं और ऐसे इंश्योरेंस प्रोडक्ट का ऑफर दे रही हैं, जिनमें ऑर्गन डोनेशन से जुड़े फायदे भी हों या जिनमें अतिरिक्त प्रीमियम देकर ये ऐड ऑन के तौर पर शामिल हो।
तो भारत में हेल्थ इंश्योरेंस ऑर्गन डोनेशन और ट्रांसप्लांट का इलाज कैसे करता है?
इस बात को ध्यान में रखते हुए कि ऑर्गन डोनेशन और ट्रांसप्लांट में दो पार्टी जुड़ी होती हैं: दान करने वाले और पाने वाले में से किसी की पॉलिसी के अंतर्गत क्या आता है?
हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी ये पहचानी गई हर उस दिक्कत, प्रक्रिया, सर्जरी और इलाज के लिए मान्य है, जिसके लिए अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत हो। तो उस मामले में जब किसी को ऑर्गन की जरूरत हो तब हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी पूरी तरह से साफ होती हैं कि वह सर्जरी के साथ ऑर्गन ट्रांसप्लांट करने से जुड़े टेस्ट और प्रक्रिया को इंश्योर की हुई राशि की सीमा तक कवर करेंगी।
लेकिन ऑर्गन डोनेशन करने वाले के खर्चे (हार्वेस्टिंग, स्टोरेज, स्क्रीनिंग वगैरह) ऑर्गन लेने वाले व्यक्ति को ही वहन करने होंगे। हालांकि, कुछ ऐसी इंश्योरेंस कंपनी भी हैं जो ऑर्गन डोनेशन करने वाले के खर्चे भी उठाती हैं।
ऑर्गन डोनेशन की प्रक्रिया से गुजरने के लिए तैयार व्यक्ति को किस तरह की लागत वहन करनी होती है?
ऑर्गन डोनेशन करने वाले से संबंधित कुल 6 तरह के मेडिकल खर्चे माने गए हैं:
1. ब्लड ग्रुप मैचिंग और पूरे स्वास्थ्य से संबंधित अनुकूलता के लिए ऑर्गन स्क्रीनिंग।
2. अस्पताल में भर्ती होने से पहले की लागत: एक बार जब ऑर्गन डोनेशन करने वाले का नाम तय हो जाता है तो अस्पताल में भर्ती होने से पहले उसे कुछ खास दवाओं, इलाज से गुजरना पड़ता है।
3. अस्पताल में भर्ती होने की लागत: ऑर्गन डोनेशन करने वाले के लिए कमरे, नर्सिंग की लागत।
4. ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन सर्जरी: ऑर्गन निकालने और इसे जरूरतमंद को ट्रांसप्लांट करने की असल सर्जरी- सर्जरी की लागत, सर्जन की फीस
5. सर्जरी के बाद की दिक्कतें, स्वस्थ्य होना: सर्जरी के बाद की दिक्कतें, उदाहरण के लिए एक किडनी के साथ काम करना ऑर्गन ट्रांसप्लांट के मामले में असामान्य नहीं है। इसलिए ठीक होने, दवाओं और अस्पताल में रुकने वगैरह की लागत बढ़ने की संभावना रहती है।
6. ऑर्गन डोनेशन करने वाले के अस्पताल में भर्ती होने के बाद के खर्चे-दवाएं, डॉक्टर से बाद में मिलना वगैरह।
ऊपर बताई गई लागतों में से दाता के अस्पताल में भर्ती होने के पहले और बाद के खर्चे और लागत और सर्जरी के बाद होने वाली दिक्कतों को आज की तारीख में भारत की ज्यादातर इंश्योरेंस पॉलिसी कवर नहीं करती हैं। कुछ कंपनियां प्रक्रिया को रोकने को या अस्पताल में भर्ती होने से पहले या बाद के खर्चों को कम करने को प्रतिबंधित करती हैं।
हालांकि सभी पॉलिसियों में जिन लागत के शामिल होने की सबसे ज्यादा अपेक्षा की जाती है वो है असल सर्जरी, दुर्भाग्यवश इसे सिर्फ कुछ कंपनियां ही कवर करती हैं।
ऑर्गन ट्रांसप्लांट इंश्योरेंस के तहत कौन सी परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाना चाहिए?
ऑर्गन डोनेशन करने वाले के लिए हार्वेस्टिंग के परिणामस्वरुप होने वाले अन्य चिकित्सीय इलाज कवर नहीं किए जाते हैं।
ऑर्गन ट्रांसप्लांट की बात आती है तो सख्त गाइडलाइन बनाई गई हैं इसलिए ऑर्गन डोनेशन करने वाला जिसका ऑर्गन दिया गया है, उसे ऑर्गन प्रत्यारोपण अधिनियम के मुताबिक नियमों को मानना होगा। ऑर्गन का दान सिर्फ व्यक्तिगत ही होना चाहिए।
इस कवर में वेटिंग पीरियड होता है जो 2 से 4 साल तक चलता है या फायदे लेने के लिए आपको पॉलिसी शुरू होने की तारीख के बाद कम से कम 2 साल तक इंतजार करना चाहिए।
ऑर्गन ट्रांसप्लांट इंश्योरेंस के साथ अब जीवन का तोहफा और स्वास्थ्य रहन-सहन पहुंच से दूर बिल्कुल नहीं है।
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